राजधानी जयपुर से 230 किलोमीटर दूर स्थित अत्यन्त प्राचीन ”श्री रामेश्वर धाम” मौजूद है। जहाँ तीन नदियों चम्बल, बनास और मध्यप्रदेश से आ रही सीप नदी का अनोखा त्रिवेणी संगम होता है। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से यह अत्यन्त मनमोहक और प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर प्राचीन स्थल है। सवाई माधोपुर से करीब साठ किलोमीटर दूर खण्डार विधानसभा क्षेत्र में आने वाला रामेश्वर धाम शहरी चकाचौधं और भागमभाग वाली जिन्दगी से दूर मन को सकून प्रदान करने वाली जगह है। रामेश्वर धाम में अत्यन्त प्राचीन मन्दिर ”श्री चतुभुर्ज नाथ रामेश्वर धाम भी है जिसमें भगवान विष्णु जी के साथ जगदीश जी और मातालक्ष्मी जी की बेहद आकर्षक प्रतिमायें विराजमान है।
मन्दिर में वर्षों से देशी घी की अखण्ड ज्योत प्रज्वलित है। इसकी ज्योत के लिये देशी घी का पूरा कोठरीनुमा गोदाम भी बना हुआ है, मन्दिर में सबसे हैरान करने वाली और खास बात यह है कि यहाँ पिछले 27 वर्षों से निरन्तर अखण्ड भजन कीर्तन भी दिन-रात चल रहा है जिसमें आस-पास के 48 गाँव वालों ने कीर्तन करने की अपनी क्रमवार ड्यूटी बांध रखी है। इस कीर्तन मण्डली की रहने और भोजन प्रसादी की व्यवस्था भी मन्दिर की भोजनशाला में बनी हुयी है। मन्दिर श्री चतुर्भुज नाथ रामेश्वर धाम के महंत पवन शर्मा ने बताया कि वैसे तो भक्तजनों और पर्यटकों की आवाजाही वर्ष भर बनी रहती है लेकिन दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ विशाल वार्षिक मेला भरता है जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते है।
यहाँ के पुजारी महावीर शर्मा ने बताया कि मन्दिर में जो विष्णु भगवान के रूप में भगवान श्री चतुर्भुज नाथ जी की मूर्ति है वह स्वयंभू है और इस मूर्ति पर इसकी स्थापना की तिथि नन्दानी सम्वत् 016 खुदी हुई है। जिसके मुताबिक यह करीब तीन हजार वर्ष पुरानी है। शर्मा ने बताया कि मन्दिर में सुबह से शयन होने तक पांच बार आरती होती है। साथ ही यहाँ गर्भ गृह में गुप्तेश्वर रामेश्वर शिवलिंग भी स्थापित है, जिसकी पूजा और श्रृंगार नियमित किया जाता है। यहाँ दर्शनार्थीयों और पर्यटकों की तादाद बढऩे के चलते विभिन्न समाजों ने खासकर मीणा और गुर्जर समाज ने यहाँ धर्मशालायें बनवा रखी है जिनमें कई कमरे एयरकंडीशन युक्त भी बने हुये है। मन्दिर के पास ही कुछ और मन्दिर भी बने हुये हैं जहाँ भी पूजा अर्चना चलती रहती है। इन्हीं में एक मन्दिर श्री रामेश्वर जी का भी है जिसमें एक दुर्लभ प्राचीन कालभैरव शिवलिंग भी मौजूद है। यहाँ भी अखण्ड ज्योत कई वर्षों से प्रज्वलित हैं। मन्दिर के बिल्कुल पास ही बारह महिनों बहने वाली चम्बल नदी भी मौजूद है जहाँ काफी विशाल परशुराम घाट बना हुआ है। साफ-सुथरी सीढिय़ां, सीमेन्ट की बैंचें और आकर्षक छतरियाँ बनी हुयी है। यहाँ श्रद्धालु स्नान करने आते रहते हैं, इसी परशुराम घाट के साथ ही त्रिवेणी संगम भी बनता है जहाँ बनास और सीप नदी चम्बल में आकर मिल जाती है। इसी त्रिवेणी संगम पर महात्मा गाँधी की अस्थियों की राख को भी हैलिकॉप्टर द्वारा यहाँ के पवित्र जल में प्रवाहित किया गया था। इसी घाट से ही मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले की जमीन भी नजऱ आती है, वहाँ से भी श्रद्धालु और अन्य लोग नदी पार करके आते रहते हैं जिनके लिये जुगाडु मोटर बोट और नावे है, जो दिन-भर फेरे लगाती रहती हैं।
यहाँ नदी में मगरमच्छो और घडियालों की तादाद भी काफी ज्यादा है। अक्सर मगरमच्छ यहाँ धूप सेंकते नजऱ आ ही जाते हैं। इनसे दूर रहने की हिदायत भी यहाँ प्रशासन ने कई जगह चस्पा करवा रखी है। रामेश्वर धाम को धार्मिक पर्यटन स्थल बढ़ाने के नजरिये से खण्डार के सक्रिय विधायक और राजस्थान सरकार के संसदीय सचिव जितेन्द्र गोठवाल ने यहाँ जीर्णोद्वार के कई कार्यों की शुरूआत करके रामेश्वर धाम को नया रंग रूप देने का सफल प्रयास किया है जिसके चलते यहाँ धार्मिक पर्यटक भी बढ़े हैं। जिसके चलते अब यहाँ कुछ सुविधाऐं विकसित करने की जरूरत बन गई है। खासकर पुलिस चौकी और उपस्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना के साथ ही सवाई माधोपुर से सीधी रोड़वेज बसों को शुरू करने की जरूरत है।
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